बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र
प्रश्न- माध्यमिक शिक्षा के लक्ष्य निर्धारण की समस्या का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
माध्यमिक शिक्षा के लक्ष्य निर्धारण की समस्या
स्वतन्त्र भारत के संविधान में निःशुल्क व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के विकास की चर्चा की गई है। अतः सरकार ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इस प्रगति का अभाव माध्यमिक शिक्षा पर अवश्य पड़ा। इसके अन्तर्गत माध्यमिक स्तर पर छात्रों की संख्या में वृद्धि होने लगी। अत: सरकार ने सभी छात्रों के लिये माध्यमिक शिक्षा की सुविधायें देने के लिये प्रयत्न किया। पिछली सात पंचवर्षीय योजनाओं में अनेक माध्यमिक विद्यालय खोले गये, परन्तु माध्यमिक शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों को पूर्ण करने में हम असफल रहे। यह प्रश्न विचारणीय है कि आज की माध्यमिक शिक्षा छात्र-छात्राओं को वह उपयोगी शिक्षा नहीं दे रही है, जिसे पाकर वे आत्म-निर्भर हो जायें और अपनी जीविका कमा सकें।
माध्यमिक शिक्षा पाने के बाद विद्यार्थी के समक्ष केवल निम्नलिखित दो मार्ग रह जाते हैं-
(क) वे अगामी शिक्षा लेने के लिये विश्वविद्यालयों में प्रवेश लें, या
(ख) वे रोजगार पाने के लिए इधर-उधर भटकते रहें।
यह अवस्था देश के विकास में बाधक है। अधिकांश विकसित देशों में माध्यमिक शिक्षा को इतना उपयोगी बनाया गया है कि विद्यार्थी उसे पाने के बाद व्यावसायिक दृष्टि से अच्छी तरह आत्म-निर्भर बन जाते हैं परन्तु हमारे देश में प्रचलित माध्यमिक शिक्षा बेरोजगारों को जन्म दे रही है। सभी रोजगार पाने के लिये भटकते हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था इस प्रकार की होने चाहिए कि उच्च शिक्षा-क्षेत्र में अयोग्य छात्रों की भीड़ कम हो, बेरोजगारी न फैले और छात्रों में आत्म-निर्भरता उत्पन्न हो। प्रजातान्त्रिक शासन प्रणाली में योग्य नागरिकों की आवश्यकता होती है। अतः माध्यमिक शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य ऐसे स्वावलम्बी, कर्त्तव्यनिष्ठ तथा राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत चरित्रवान नागरिक तैयार करना है, जो राष्ट्र को समृद्ध व विकसित बनाने के लिए अपना योगदान दे सकें। इसलिये माध्यमिक शिक्षा को धार्मिक, नैतिक, व्यावसायिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और चारित्रिक दृष्टि से समृद्ध बनाना है, जिससे उसके अनुरूप सच्चरित्र व उत्तम नागरिकों का निर्माण किया जा सके।
योग्य नागरिक बनाने का उद्देश्य- माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में समाज के लोकतन्त्रीय स्वरूप को अपनाने वाले नागरिक तैयार किये जाने चाहिये। ये नागरिक राष्ट्रीय समृद्धि में योग देने वाले हो तथा स्वावलम्बी और चरित्रवान हों। विद्यार्थी कर्त्तव्य-परायण, राष्ट्रभक्त मिल-जुलकर एकता से रहने वाले, धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक सद्गुणों से पूर्ण हों।
चरित्र-निर्माण के उद्देश्य - वर्तमान माध्यमिक शिक्षा में चरित्र-निर्माण सम्बन्धी कार्यक्रमों पर ध्यान देना आवश्यक है। हमारी शिक्षा का उद्देश्य केवल प्रमाण-पत्र पाने योग्य शिक्षा के अवसर जुटाना न होकर बालक को सही अर्थों में चरित्रवान बनाना हो। हमारा देश संसार का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। इसे चरित्रवान योग्य नागरिकों की आवश्यकता है। हमारी शिक्षा व्यवस्था केवल पुस्तकीय ज्ञान देने वाली न हो, वरन् इस अर्जित ज्ञान को दैनिक जीवन, राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में उतार कर हम देश व समाज के हित में कार्य कर सकते हैं। हमारे भावी नागरिकों का सर्वांगीण विकास हो। वे शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक सभी प्रकार से पूर्ण हों। उन्हें ऐसे पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए कि मौलिक रूप से स्वतन्त्र चिन्तन की प्रवृत्ति अपनाये, स्वानुभव अर्जित करें और अर्जित अनुभवों का उपयोग जीवन की समस्याओं को हल करने में प्रयोग कर सकें। उनमें नैतिकतापूर्वक अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने की क्षमता हो।
पाठ्यक्रम के निर्धारण की समस्या- माध्यमिक शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि माध्यमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम व्यावहारिक और उपयोगी बनायें। यद्यपि हमारे देश में भौगोलिक विभिन्नताएँ हैं। फिर भी पूरे राष्ट्र के लिये ऐसा समान पाठ्यक्रम तैयार किया जा सकता है जो राष्ट्रीय लक्ष्यों और शिक्षा उद्देश्यों की पूर्ति करने में सहायक हो सके। भारत सरकार इस दिशा में प्रयत्नशील है। अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् (All India Board of Secondary Education) ने अपने सुझावों द्वारा कुछ विषयों को अनिवार्य बताकर उन्हें प्रत्येक राज्य में पाठ्यक्रम का अंग बनाने का सुझाव दिया है। राष्ट्र की आवश्यकता के अनुसार एक ऐसा पाठ्यक्रम तैयार किया जाये, जो राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति करता हो, परन्तु साथ-साथ उसमें क्षेत्रीय आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग प्रकार के वर्ग और समूह हों।
पाठ्यक्रम में भाषा-शिक्षण की व्यवस्था को निर्धारित करना अपने आप में एक बड़ी समस्या है। 'हमारे राष्ट्र की राष्ट्रीय भाषा 'हिन्दी' है। इसका अध्ययन करना प्रत्येक भारतवासी छात्र के लिये आवश्यक होगा। परन्तु 'अहिन्दी भाषी क्षेत्र के लोग इसे अन्याय पूर्ण नीति कहकर विरोध करते हैं। यद्यपि अब हम स्वतन्त्र हैं परन्तु अंग्रेजी भाषा के प्रति अब भी हमारा आकर्षण बना हुआ है। दक्षिणी भारत के बहुत से लोग इसी कारण आज भी हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी भाषा का पक्ष लेते हैं। हमारा देश धर्म प्रयत्न देश है। अतः मूल धर्म ग्रन्थ संस्कृत में होने के कारण लोगों को संस्कृत भाषा के प्रति भी मोह है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर यह निर्धारित हुआ कि माध्यमिक स्तर पर कम-से-कम तीन भाषायें अवश्य पढ़ाई जायें, यही त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula) कहलाता है। इसमें भाषा का अध्ययन इस प्रकार किया गया है-
1. राष्ट्रीय भाषा हिन्दी या क्षेत्रीय (अहिन्दी क्षेत्रों के लिये)।
2. यदि ऊपर राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी न ली गई हो तो हिन्दी या कोई अन्य भारतीय भाषा या
3. संस्कृत या अन्य भारतीय भाषा (यदि ऊपर न ली गई हो) या पाश्चात्य भाषा।
इस प्रकार की व्यवस्था में छात्र स्थानीय (क्षेत्रीय) भाषा के साथ-साथ राष्ट्रीय भाषा भी पढ़ेगा और तीसरी भाषा में संस्कृत या अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषा को पढ़ेगा।
माध्यमिक शिक्षा स्तर पर- पाठ्यक्रम में विषयों की एकरूपता लाने के लिये छात्रों की अभिरुचि (Aptitude), क्षेत्रीय माँग, मातृभाषा (माध्यम के रूप में) परामर्श एवं निर्देशन (Counselling Guidance) की व्यवस्था, तथा पाठ्यक्रम-संचालन की उपयुक्त पद्धति आदि पर ध्यान दिया गया और इन्हें आवश्यक माना गया है। पाठ्यक्रम में निम्न स्तर पर सामान्य विज्ञान (General Science) और सामाजिक अध्ययन (Social Study) को अनिवार्य विषयों में रखा गया। शेष विषयों को छात्रों की आवश्यकता, वैयक्तिक रुचि, अभिरुचि आयु और क्षमता के अनुकूल चुनने की स्वतन्त्रता दी गई। राष्ट्र की वर्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम में औद्योगिक तथा व्यावसायिक एवं प्राविधिक विषय भी शामिल किये गये। इस प्रकार- निम्न माध्यमिक स्तर पर-उपरोक्त तीन भाषायें, तीन अनिवार्य विषय-सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन और गणित तथा कृषि या कोई कलात्मक विषय या कोई वाणिज्यात्मक विषय, संगीत या शारीरिक विकास के विषय को प्रधानता दी गई।
उच्च माध्यमिक स्तर पर- माध्यमिक शिक्षा आयोग की सिफारिशों के अनुसार, अनिवार्य भाषाओं, विषयों के साथ-साथ छात्रों की रुचियों, अभिरुचियों और आवश्यकताओं के अनुकूल, विविध वर्ग समूह बनाये गये। इनमें औद्योगिक (Industrial), व्यावसायिक (Vocational), शिल्प (Craft) आदि विषयों की व्यवस्था करके पाठ्यक्रम को बहु-उद्देशीय बनाने पर विशेष बल दिया गया। प्रश्न 4. माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम परीक्षा पद्धति निर्धारण की समस्या का वर्णन कीजिए। उत्तर- परीक्षा पद्धति की समस्या-वर्तमान समय में प्रचलित परीक्षा पद्धति में बहुत से दोष उत्पन्न हो गये हैं। वर्तमान समय में यह प्रणाली इतनी अनुपयुक्त हो गई है कि इसे छात्र की शैक्षिक उपलब्धि एवं विकास की परख का उचित और वैज्ञानिक साधन नहीं माना जा सकता, परन्तु हम परीक्षा-पद्धति को समाप्त भी नहीं कर सकते। परन्तु इसमें आवश्यक सुधार लाने के लिये सोच-समझकर परिवर्तन अवश्य लाया जा सकता है।
मात्र बाह्य परीक्षाओं (External Examination) को ही बालक की सफलता का मापदण्ड नहीं बनाया जा सकता। हमें छात्रों के कार्य और विकास की अन्तर्परीक्षायें (Internal Examination) एवं परीक्षण (Tests) भी लेने चाहिये। छात्रों की योग्यता की जाँच उनके वर्ष भर के कार्य के आधार पर होनी चाहिये। उनकी प्रगति के मासिक, त्रैमासिक अभिलेख (Records) तैयार हों। उनकी योग्यता की जाँच अंकों (Marks) में न करके ग्रेड्स (Grades) में की जाये। परीक्षा प्रश्नपत्रों में सुधार किया जाये। वस्तुनिष्ठ (Objective) प्रश्नों को भी विषयनिष्ठ या आत्मनिष्ठ (Subjective) प्रश्नों के साथ-साथ पूछा जाये। इस प्रकार परीक्षा-पद्धति में आवश्यक सुधार ला सकते हैं।
प्रबन्ध एवं प्रशासन की समस्या- हमारे देश में तीन प्रकार के माध्यमिक विद्यालय हैं- (क) सरकारी विद्यालय, (ख) व्यक्तिगत या गैर-सरकारी विद्यालय, (ग) स्थानीय परिषदों द्वारा संचालित विद्यालय। सभी सरकारी माध्यमिक विद्यालयों का प्रबन्ध सरकार द्वारा होता है। व्यक्तिगत (Private) विद्यालयों का प्रबन्ध व्यक्तिगत प्रबन्ध समितियों (Managing Committee) के हाथ में होता है। सरकार इन्हें आर्थिक अनुदान देती है तथा उनके शिक्षकों के वेतनों के भुगतान का दायित्व स्वयं वहन करती है। अधिकांश राज्यों में इस प्रकार की व्यवस्था है। स्थानीय संस्थायें माध्यमिक संस्थायें चलाती है, परन्तु उन्हें इस कार्य में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। माध्यमिक स्तर पर प्राविधिक (Technical) तथा स्त्री शिक्षा की व्यवस्था सरकार के हाथ में है। इन क्षेत्रों में भी स्वैच्छिक संगठनों द्वारा चलाई जाने वाली संस्थायें भी पर्याप्त संख्या में हैं, परन्तु इनकी दशा अच्छी नहीं है। इनकी आर्थिक शैक्षिक, शिक्षक-सम्बन्धी, भवन-सम्बन्धी तथा वातावरण सम्बन्धी व्यवस्थायें अत्यन्त शोचनीय हैं। कहीं ये संस्थायें आवश्यकता से अधिक हैं तो किन्हीं क्षेत्रों में इनका नितान्त अभाव है। कुछ विद्यालय मान्यता के मापदण्डों पर खरे नहीं उतरे हैं।
परन्तु सरकार द्वारा अब इन संस्थाओं के प्रबन्ध में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ कर दिया है। उत्तर प्रदेश में तो इन संस्थाओं के शिक्षकों का वेतन भी सरकार ने अपने उत्तरदायित्व में ले लिया है। सरकार धीरे-धीरे अध्यापकों की नियुक्ति पर भी नियन्त्रण कर रही है।
माध्यमिक स्कूलों का प्रशासन भी उपयोगी नहीं है। शिक्षा प्रशासन के लिए प्रत्येक राज्य में केन्द्रीय (Central), मण्डलीय (Regional) तथा जनपदीय (District) इकाइयाँ (Units) हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में शिक्षा प्रशासन का उत्तरदायित्व निभाती हैं। माध्यमिक विद्यालयों के प्रशासन के लिये प्रत्येक राज्य में माध्यमिक शिक्षा परिषद् (Board of Secondary Education) होती है। यह परिषद् पाठ्यक्रम निर्धारण, परीक्षा-व्यवस्था और विद्यालय को मान्यता देने के कार्य करती है। इस कारण माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था पर दोहरा प्रशासन हो जाता है। माध्यमिक शिक्षा परिषद् और शिक्षा विभाग दोनों प्रशासन में भाग लेते हैं। शिक्षा विभाग राज्य के अन्य विभागों से सहयोग लेकर माध्यमिक परिषद् का सहयोग भी प्राप्त करें। दोहरे प्रशासन से माध्यमिक विद्यालय दोहरे नियन्त्रण में आकर अपनी योजना को ठीक प्रकार से कार्यान्वित नहीं कर पाते हैं। दोनों में सहयोग और तालमेल का होना आवश्यक है। ये एक-दूसरे के काम में साधक हों, बाधक नहीं तभी माध्यमिक शिक्षा का प्रशासन सही अर्थों में वास्तविक प्रशासन बन सकेगा।
धनाभाव की समस्या- अभी तक शिक्षा-प्रसार में व्यक्तिगत एवं स्वैच्छिक प्रयास ही अधिक हुए हैं। सरकार ने केवल आदर्श (Mode) रूप में माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की है। स्वैच्छिक प्रयास से चलने वाले विद्यालयों को सदैव आर्थिक अभाव का सामना करना पड़ता है। उनके आय के स्रोत सीमित और अपर्याप्त होते हैं। अधिकांश राज्यों में यद्यपि शिक्षकों के वेतन का भुगतान सरकार द्वारा होता है। परन्तु अभी भी बहुत से विद्यालयों के पास धन के अभाव के कारण उनके पास न तो अच्छे भवन होते हैं और न अच्छी शिक्षण सुविधायें होती हैं। वर्तमान शिक्षा खर्चीली है और अनुपयोगी भी है। उपयोगी विषयों और कार्यक्रमों को ये स्कूल अपने यहाँ धनाभाव के कारण क्रियान्वित नहीं कर पाते हैं। अमेरिका जैसे देशों में शिक्षा कर लगाकर आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न किया जाता है। इसी प्रकार हमारी सरकार भी इन विद्यालयों की दशा सुधारने के लिये शिक्षा-कर जैसी व्यवस्था कर सकती है। दान-राशि को बढ़ाने के लिए दान-राशि को आयकर से मुक्त करके दाता-लोगों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
माध्यमिक विद्यालयों को व्यवस्था के भवन प्रयोगशालायें, वाचनालय, शिक्षण सामग्री तथा कार्यशाला आदि की व्यवस्था करने के लिए धन की पर्याप्त आवश्यकता होती है। सरकार और जनता दोनों मिलकर इस आर्थिक व्यवस्था को अच्छा और सुदृढ़ बना सकते हैं।
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- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
- प्रश्न- वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य दोष क्या थे?
- प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
- प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
- प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ज्ञान के अर्थ तथा उसकी अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा और शिक्षण के सम्प्रत्यय पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- व्यापक शिक्षा तथा संकुचित शिक्षा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विषय-विस्तार को संक्षेप में लिखिए
- प्रश्न- "शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "अच्छे नैतिक चरित्र का विकास ही शिक्षा है।' समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा को मनुष्य एवं समाज का निर्माण करना चाहिए। कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- महात्मा गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा लिखिए।
- प्रश्न- "सा विद्या या विमुक्तये' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।' समझाइए।
- प्रश्न- "शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक समरूप एवं प्रगतिशील विकास है।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा के सर्वागीण और सर्वोच्च विकास से है।' शिक्षा की इस परिभाषा से आप कहाँ तक सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- जॉन डी वी के अनुसार शिक्षा की परिभाषा बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की विवेचना संक्षेप में कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- उद्देश्य निर्धारित हो जाने से कौन-कौन से लाभ होते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के आदर्श उद्देश्यों के गुणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्ष तथा लोकतंत्रीय भारत के लिए शिक्षा के सर्वाधिक उद्देश्य कौन से हैं?
- प्रश्न- शारीरिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानसिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक एवं चारित्रिक विकास के उद्देश्य को समझाइए।
- प्रश्न- व्यावसायिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शासनतन्त्र एवं नागरिकता की शिक्षा के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्र की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आध्यात्मिक चेतना के विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्य एक दूसरे के पूरक हैं।' इसका वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य सम्बन्धी शिक्षाशास्त्रियों के विचार को बताइए।
- प्रश्न- क्या शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्यों में समन्वय स्थापित करना सम्भव है? यदि हाँ, तो कैसे?
- प्रश्न- भारतीय जनतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्यों की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यावसायीकरण से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा का स्वरूप क्या है? व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के उद्देश्यों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- क्या शिक्षा के विविध उद्देश्यों का एक उद्देश्य में संश्लेषण किया जाना चाहिए? यदि हाँ तो वह उद्देश्य क्या होना चाहिए और क्यों?
- प्रश्न- उद्देश्य और लक्ष्य में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निरौपचारिक शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- "वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्य एक-दूसरे के पूरक हैं।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक दृष्टि से भारत में शिक्षा के उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-सा है और क्यों?
- प्रश्न- शिक्षा के वैक्तिक उद्देश्य से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के क्या कार्य होने चाहिये?
- प्रश्न- शिक्षा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का क्या कार्य है?
- प्रश्न- राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा का क्या कार्य है?
- प्रश्न- “शिक्षा मानव विकास का मूल साधन है।' इस कथन की व्याख्या करते हुए इसके कार्य, आवश्यकता एवं महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक जीवन में शिक्षा के क्या कार्य हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्या कार्य हैं?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्या कार्य है?
- प्रश्न- मानव जीवन में शिक्षा के कार्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्ति के प्रति शिक्षा के दो कार्यों को बताइए।
- प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? संस्कृति की आवश्यकता एवं महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना (पिछड़) को समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा व संस्कृति में सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति के आधुनिक स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत से आप क्या समझते हैं? यह शिक्षा से किस प्रकार सम्बधित है?
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति की आवश्यकता व महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कौशल अधिग्रहण क्या है? कौशल अधिग्रहण के तीन चरणों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- कौशल अधिग्रहण के लिए संज्ञानात्मक दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कौशल अधिग्रहण के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मूल्य शब्द का अर्थ बताइए। मानव जीवन में मूल्यों का क्या स्थान है?
- प्रश्न- बालक में भारतीय जीवन मूल्यों की स्थापना में परिवार अथवा विद्यालय की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जीवन मूल्यों की स्थापना में परिवार का क्या महत्व है?
- प्रश्न- जीवन मूल्यों की स्थापना में विद्यालय का क्या महत्व है?
- प्रश्न- मूल्य शिक्षा व मूल्यपरक शिक्षा की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए और उसके मार्गदर्शक सिद्धान्तों तथा उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक शिक्षा एवं सांस्कृतिक मूल्यों के विकास के अभिकरण बताइए।
- प्रश्न- मूल्य कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- मूल्यपूरक शिक्षा की आवश्यकता समझाइए।
- प्रश्न- मूल्य निर्माण में विद्यालय की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- शैक्षिक मूल्यों से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक तथ्य क्या है? इसी के साथ ही सामाजिक एकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक एकता का सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- यान्त्रिक और सावयवी एकता में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- अवकाश क्या है? अवकाश शिक्षा के क्या लाभ हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अवकाश शिक्षा का क्या अर्थ है? दो प्रकार के अवकाश के बारे में बताइए।
- प्रश्न- अवकाश की अवधारणा को समझाइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता क्या है? राष्ट्रीय एकता के लिए शैक्षिक कार्यक्रम बताइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता क्या है?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के विकास में आने वाली बाधाओं को दूर करने के उपाय कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- भारत में भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं का वर्णन कीजिए इस सम्बन्ध में गोष्ठियों एवं समितियों के विचारों का भी उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता का अर्थ स्पष्ट कीजिए। शिक्षा राष्ट्रीय एकता के विकास में किस प्रकार सहायता कर सकती है?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा राष्ट्रीयता के विकास में किस प्रकार सहायता कर सकती है?
- प्रश्न- भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता के विकास के लिए कौन-कौन से उपाय हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकीकरण एकता के मार्ग में कौन-कौन सी बाधाएँ हैं? शिक्षा राष्ट्रीय एकीकरण के विकास में किस प्रकार योगदान दे सकती है?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के लिए किए गए सरकारी प्रयासों को बताइए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की प्राप्ति के उपायों को सुझाइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के लिए शिक्षा के क्या उद्देश्य हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के लिए शैक्षिक कार्यक्रम बताइए।
- प्रश्न- भावात्मक एकता क्या है?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय बोध का विकास करने के उपाय की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास के लिए क्या-क्या उपाय किये गये हैं?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास के उपायों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आप अन्तर्राष्ट्रीयता से क्या समझते हैं?
- प्रश्न- अंतर्राष्ट्रीयता के गुण-दोष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अंतर्राष्ट्रीयता के विकास में बाधक तत्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अंतर्राष्ट्रीयता अवबोध के विकास में यूनेस्को की भूमिका पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भावात्मक एकता, राष्ट्रीय एकता और अंतर्राष्ट्रीयता को समझाइए।
- प्रश्न- भारत में भावात्मक एकता की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संकीर्ण राष्ट्रीयता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- मानवीय संसाधन से आप क्या समझते हैं? मानवीय संसाधन का शिक्षा में महत्व बताइये।
- प्रश्न- मानवीय साधन कितने प्रकार के होते हैं तथा इसकी आवश्यकता बताइए।
- प्रश्न- मानव संसाधन विकास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा द्वारा मानव संसाधनों के विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानव संसाधन विकास का परिभाषाओं सहित वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव संसाधन विकास का क्या अर्थ है? इसके लिए किस प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता है?
- प्रश्न- मानवीय संसाधनों की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- मानव पूँजी के रूप में शिक्षा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव शक्ति नियोजन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मानव शक्ति नियोजन की प्रमुख सीमाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उत्पादन क्रिया के रूप में शिक्षा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के साधनों से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न साधनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के साधनों से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- औपचारिक साधन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा के अनौपचारिक साधन से आप क्या समझते हैं? विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा के अन्य अनौपचारिक साधनों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के सक्रिय व निष्क्रिय साधन लिखिए।
- प्रश्न- ब्राउन ने शिक्षा के अभिकरणों को कितने भागों में बाँटा है? प्रत्येक का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- औपचारिक, निरौपचारिक और अनौपचारिक अभिकरणों के सापेक्षिक सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अनौपचारिक साधनों में जनसंचार के साधनों का क्या योगदान है?
- प्रश्न- अनौपचारिक और औपचारिक शिक्षा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- औपचारिक तथा अनौपचारिक साधनों में कौन अधिक महत्वपूर्ण है?
- प्रश्न- संविधान में शिक्षा से सम्बन्धित प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों से सम्बन्धित संवैधानिक मूल्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- स्वतन्त्रता, न्याय, समता एवं बन्धुत्व की संवैधानिक वचनबद्धता के संदर्भ में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का क्या अर्थ है? मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पूर्व-प्राथमिक शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्यों का उल्लेख करते हुए पूर्व प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- किण्डरगार्टन प्रणाली के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- किण्डरगार्टन प्रणाली के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- किण्डरगार्टन प्रणाली के दोषों को बताइए।
- प्रश्न- मॉण्टेसरी शिक्षा पद्धति के गुण-दोषों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मॉण्टेसरी पद्धति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मॉण्टेसरी प्रणाली के दोष बताइए।
- प्रश्न- डाल्टन पद्धति का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- डाल्टन पद्धति के गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डाल्टन पद्धति की सीमाओं या दोष का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पूर्व प्राथमिक शिक्षा का विकास बताइए।
- प्रश्न- पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य एवं कार्यक्रमों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पूर्व प्राथमिक शिक्षा का नियोजन एवं संगठन कैसे किया जाता है?
- प्रश्न- माण्टेसरी तथा किण्डरगार्टन पद्धति की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आधारभूत तत्व क्या हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- नई शिक्षा नीति - 2020 में स्कूली शिक्षा से सम्बन्धित बिन्दुओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम से आप क्या समझते हैं? इसके गुण व दोषों पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- भारत में प्राथमिक शिक्षा के विकास को समझाइये।
- प्रश्न- प्राचीन एवं मुस्लिम काल में प्राथमिक शिक्षा के विकास पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश काल में प्राथमिक शिक्षा की समस्या बताइए।
- प्रश्न- प्राथमिक शिक्षा की प्रमुख समस्यायें क्या हैं? उन्हें हल करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक शिक्षा की प्रमुख समस्याओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यालय व्यवस्था तथा वित्त व्यवस्था से सम्बन्धित प्राथमिक शिक्षा की समस्याएँ लिखिए।
- प्रश्न- प्राथमिक शिक्षकों की प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक शिक्षा के समेकित अभिगमन से क्या तात्पर्य है? विस्तारपूर्वक समझाइये।
- प्रश्न- प्राथमिक शिक्षा के समेकित अभिगमन से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्राथमिक शिक्षा के समेकित दृष्टिकोण के आधारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समेकित अभिगमन की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- माध्यमिक शिक्षा की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
- प्रश्न- माध्यमिक शिक्षा के संगठन एवं स्वरूप की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- माध्यमिक शिक्षा के लक्ष्य निर्धारण की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता के प्रयासों पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के लिए संवैधानिक व्यवस्था क्या है?
- प्रश्न- माध्यमिक शिक्षा के विकास के लिए शिक्षा आयोग (1965-66) ने किन सुझावों को अपनाने पर बल दिया?
- प्रश्न- अध्यापक-निर्देशिकाओं तथा शिक्षण सामग्री के महत्त्व से आप क्या समझते हैं? इस सम्बन्ध में कोठारी आयोग के सुझाव बताइये।
- प्रश्न- विश्वविद्यालयी सम्प्रभुता से क्या तात्पर्य है? विश्वविद्यालयी सम्प्रभुता की क्या समस्यायें हैं?
- प्रश्न- विश्वविद्यालयी सम्प्रभुता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- विश्वविद्यालयी सम्प्रभुता पर राधा कृष्णन के विचार लिखिए।
- प्रश्न- उच्च शिक्षा के मार्ग में कौन-कौन सी समस्याएँ आती हैं? इनके कार्यों का भी उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- उच्च शिक्षा के मार्ग में आने वाली प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उच्च शिक्षा के मार्ग में वित्तीय समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उच्च शिक्षा में उद्देश्यहीनता तथा दोषपूर्ण पाठ्यक्रम पर विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- उच्च शिक्षा की प्रमुख समस्याओं के समाधान हेतु उपाय बताइए।
- प्रश्न- विश्वविद्यालय के कार्यों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- उच्च शिक्षा का प्रसार सीमित साधनों से अधिक हो रहा है। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उच्च शिक्षा में बेरोजगारी प्रमुख समस्या है। टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- उच्च शिक्षा के उद्देश्य भारत के सन्दर्भ में क्या होने चाहिए? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में कितने प्रकार के विश्वविद्यालय हैं?
- प्रश्न- भारत में विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र शासित विश्वविद्यालय क्या हैं? उनके नाम लिखिए।
- प्रश्न- 'खुला विश्वविद्यालय' क्या है ?
- प्रश्न- राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के उद्देश्य लिखिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय व राज्यीय विश्वविद्यालयों को उनके संगठन के अनुसार कितने वर्गों में विभाजित किया गया है?
- प्रश्न- मानव विकास संसाधन मंत्रालय का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- यूनेस्को को संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के संगठन का विस्तार से उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) के पाठ्यक्रम प्रारूप की व्यावहारिक उपादेयता का विस्तार से चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार हेतु राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के कार्यों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद के संगठन का वर्णन करते हुए उसके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- N.C.E.R.T से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व व कार्यों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान पर टिपणी लिखिये।
- प्रश्न- AICTE की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- IQAC की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- एन. आई. ओ. एस. क्या है?
- प्रश्न- राज्य शैक्षिक अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद के उद्देश्यों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संगठन तथा कार्यों को बताते हुए इसके महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संगठन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "विश्वविद्यालय स्वायत्त संस्थायें हैं।' इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- डिग्री कॉलेजों के विकास में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के गठन का क्या उद्देश्य था?
- प्रश्न- शिक्षा बोर्ड के बारे में विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- क्या आई.बी. बोर्ड आई.सी.एस.ई. से बेहतर हैं?
- प्रश्न- केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा उसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राज्य शिक्षा बोर्ड पर संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- राज्य शिक्षा बोर्ड के कार्य बताइए।
- प्रश्न- सी. बी. एस. ई. बोर्ड की ग्रेडिंग प्रणाली के विषय पर टिप्पणी दीजिए।